बिहार में चुनाव आयोग के अभियान से दलित और गरीब आबादी सबसे ज्यादा प्रभावित


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मिथिलेश कुमार दवा दुकान पर काम करते हैं। रहने वाले पटना के राघोपुर के हैं, लेकिन रोजगार की तलाश ने उन्हें कटिहार पहुंचा दिया है। गांव की वोटर लिस्ट में उनका नाम दर्ज है, लेकिन उनके पास आवासीय या जन्म प्रमाणपत्र नहीं। मैट्रिक पास होते तो डिग्री की कॉपी लगा देते, लेकिन फेल हैं। डॉक्युमेंट बनवाने के लिए उन्हें दुकान से दो-तीन दिन की छुट्टी मिल सकती है, लेकिन अभी सरकारी विभागों में जो भीड़ उमड़ी है, उसे देखते हुए मिथिलेश का काम शायद ही हो पाए। एक और समस्या है, दलालों की। बिना सुविधा शुल्क दिए प्रमाणपत्र जल्दी नहीं बन रहा। इस तरह की कई शिकायतें आ रही हैं। मिथिलेश के पास न पैसा है और न समय। उनके पास आधार कार्ड है, लेकिन वह चुनाव आयोग के लिए मान्य नहीं।

गड़बड़ियों की भरमार: Special Intensive Revision यानी SIR से गुजर रहे बिहार में यह समस्या आम है। डॉक्युमेंट बनवाने और ठीक कराने के लिए लोग परेशान हैं। मधेपुरा की जलाल पट्टी में रहने वाली अभिलाषा के वोटर कार्ड पर सीएम नीतीश कुमार की तस्वीर लगी है। उनके पति चंदन कुमार का आरोप है कि उन्होंने जब इसकी शिकायत BLO से की, तो उसने गड़बड़ी को छिपाने की नसीहत दे डाली। चंदन को समझ नहीं आ रहा कि मतदाता पुनरीक्षण के फॉर्म में वह किस तरह दस्तावेज पूरे लगाएं।

संशय में वोटर्स: बिहार में इस साल के आखिर तक विधानसभा चुनाव होना है। इसके पहले चुनाव आयोग के अभियान ने वोटर्स को संशय में डाल दिया है। अभियान की वजह से दो करोड़ से अधिक लोग सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। इनमें ज्यादातर दलित , गरीब और वो आबादी है, जो पढ़ी-लिखी नहीं।

आयोग का आदेश: चुनाव आयोग के मुताबिक, बिहार के 7.90 करोड़ मतदाताओं में से 4.96 करोड़ के नाम 2003 की वोटर लिस्ट में शामिल हैं। इन्हें सिर्फ फॉर्म भरना है और कोई डॉक्युमेंट देने की जरूरत नहीं। बाकी बचे 2.94 करोड़ लोग। इनमें से जिनके माता-पिता का नाम 2003 की वोटर लिस्ट में हैं, उन्हें भी अलग से दस्तावेज नहीं देना। लेकिन, जिनके माता-पिता के या उनके खुद के नाम 22 साल पहले की उस लिस्ट में नहीं, उन्हें फॉर्म के साथ डॉक्युमेंट भी देना होगा।

मान्य डॉक्युमेंट्स: चुनाव आयोग ने 11 डॉक्युमेंट की लिस्ट जारी की है, जिसमें से कोई एक देना है – जन्म प्रमाणपत्र, मैट्रिक या एजुकेशन सर्टिफिकेट, पासपोर्ट, स्थायी निवासी प्रमाणपत्र, जाति प्रमाणपत्र, वन अधिकार प्रमाणपत्र, सरकारी कर्मचारी या पेंशनभोगी पहचानपत्र, बैंक/डाकघर आदि से जारी प्रमाणपत्र, NRC (बिहार में लागू नहीं), सेवा पहचानपत्र, जमीन या घर की रजिस्ट्री।

विपक्ष की मांग: इस लिस्ट में आधार कार्ड, राशन कार्ड और मनरेगा जॉब कार्ड नहीं है। जनता की परेशानी का हवाला देते हुए विपक्ष इन्हें भी शामिल करने की मांग कर रहा है। वहीं, बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल का कहना है कि अगर मतदाताओं को परेशानी हो रही होती तो अब तक तीन करोड़ से अधिक फॉर्म नहीं जमा हो गए होते।

फर्जी वोटर: चुनाव आयोग का कहना है कि इस पूरे अभियान का मकसद फर्जी आधार, मनरेगा जॉब कार्ड वगैरह के जरिए वोटर लिस्ट में शामिल अवैध प्रवासियों के नाम हटाना है। बीते बरसों में बड़ी संख्या में बाहरी लोग राज्य में आए और गलत तरीके से वोटर बन बैठे। आरोप है कि वोटबैंक की राजनीति में विभिन्न दलों ने इनके दस्तावेज बनवा दिए। SIR का मकसद वोटर लिस्ट को दुरुस्त करना है।

घुसपैठियों की समस्या: बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी कहते हैं, राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों में बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों की बड़ी संख्या आ बसी है। फर्जी आधार और राशन कार्ड के जरिए स्थायी निवासी प्रमाणपत्र बनवाने की कोशिश की जाती है ताकि वोटर बन सकें। केंद्रीय खाद्य मंत्रालय की नवंबर 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक, पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के 80 करोड़ लाभार्थियों में से करीब 6 करोड़ के पास फर्जी राशन कार्ड थे, जिन्हें रद्द कर दिया गया है।

क्या है गाइडलाइन: पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता मधुकर मिश्र और शशांकधर शेखर कहते हैं, ‘फॉर्म-6 की गाइडलाइन में आइटम नं 5 के मुताबिक आधार कार्ड देना जरूरी नहीं है। आधार कार्ड नागरिकता का जरूरी दस्तावेज नहीं है। हालांकि वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करवाने के लिए फॉर्म-6 भरने में यह एक सहायक दस्तावेज हो सकता है।’

मतदाता जागरूकता: विपक्ष का विरोध जारी है। 9 जुलाई के बिहार बंद की सफलता और जन समर्थन से भी उसका उत्साह बढ़ा हुआ है। इस हंगामे के बावजूद एक फैक्ट यह भी है कि इसी बहाने मतदाता जागरूकता बढ़ी है। लोग वोटर बनने के लिए परेशान हैं। फॉर्म जमा करने में भी ज्यादातर लोग पेच नहीं फंसा रहे। मुजफ्फरपुर के पारू निवासी नरेश वर्मा ने परिवार के 8 सदस्यों के फॉर्म जमा करा दिए हैं। बात करते हुए उनकी खुशी समझ आती है कि उनका परिवार वोटर बना रहेगा।

सुप्रीम मुहर: सुप्रीम कोर्ट ने जब साफ कर दिया है कि बिहार में वोटर लिस्ट रिविजन जारी रहेगा, तो एक तरह से अभियान पर पक्की मुहर लग गई है। विपक्ष को इससे थोड़ा धक्का जरूर लगा है, लेकिन शीर्ष अदालत ने साथ में आधार, राशन और वोटर कार्ड को भी मान्यता देने का सुझाव दिया। विपक्ष इसे सफलता मान रहा और यह संदेश भी समाज के निचले तबके में पहुंचा रहा है कि सत्तारूढ़ गठबंधन की पार्टियां चुनाव आयोग को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही हैं।

 

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