भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में मराठी भाषी लोगों की संख्या सबसे अधिक है, मगर हिंदी और गुजराती समेत अन्य भारतीय भाषाएं बोलने वाले लोग भी कई साल से यहां रह रहे हैं.
व्यापार या फिर नौकरी के लिए यहां आ कर बसे ऐसे परिवारों की संख्या अब यहां की राजनीति में भी अहम हो गई है.
मुंबई के कुर्ला में रहने वाले हस्ती जैन एक चार्टर्ड अकाउंटेंट और व्यापारी हैं.
वह कहते हैं, “हमारे यहां जो राज्य बने हुए हैं वे भाषा से बने हुए हैं. यही इतिहास है. सब अपने राज्य से प्यार करते हैं और मुंबई में सब मराठी से प्यार करते हैं. उसमें कोई बहस नहीं. मगर हर किसी को मराठी नहीं आती. कई व्यापारी परिवार दूसरे राज्यों से आए हुए हैं इसलिए वे अच्छी मराठी नहीं बोल पाते. लेकिन वह कोशिश ज़रूर करते हैं. मुझे लगता है कि यह बात हर किसी को समझनी चाहिए. हम सब भारतीय हैं. ऐसी बातों से लोगों में डर पैदा होता है. ख़ास तौर पर व्यापारी समुदाय में.”
ललित जैन मुंबई में कई साल से गहनों का कारोबार करते हैं. उन्हें लगता है कि फ़िलहाल भाषा को लेकर विवाद तो है, मगर मुंबई के लिए यह नई बात नहीं है.
ललित जैन का कहना है, “मेरा तो जन्म यहीं हुआ है. मैं जन्म से बढ़िया मराठी बोलता हूं. परिवार में हम सब को मराठी आती है. दूसरे राज्यों से आए बहुत कम हैं जिनको मराठी नहीं आती. तनाव की ऐसी घटनाएं बीच-बीच में होती रहती हैं. अभी भी मुंबई में जो कुछ हुआ है वह कुछ दिनों की बात है. यहां फिर से सब कुछ सामान्य हो जाएगा.”
मुंबई के कारोबारी संगठनों ने भी इस हिंसा का विरोध किया है और सरकार पर सवाल खड़े किए हैं.
मुंबई के ‘फ़ेडरेशन ऑफ़ रिटेल ट्रेडर्स वेलफ़ेयर एसोसिएशन’ के अध्यक्ष वीरेन शाह ने कहा, “मैं यह मानता हूं कि मुंबई और महाराष्ट्र में रह कर बिज़नेस करने के लिए मराठी जानना और बोलना ज़रूरी है. मगर इसका मतलब यह नहीं है कि किसी के पास किसी भी व्यापारी या दुकानदार को डराने-धमकाने का अधिकार है. कोई दुकानदार किसी भाषा में नहीं बोल रहा है इसलिए उसे मारना क़ानून के ख़िलाफ़ है. हम इसका विरोध करते हैं और हैरान हैं कि ‘वीडियो’ में सब कुछ साफ़ दिखने के बाद भी सरकार सख़्ती से पेश क्यों नहीं आ रही?”
मराठी और हिंदी को लेकर पैदा हुए हालात से मराठी आंदोलन से जुड़े साहित्यकार भी चिंतित हैं. उन्हें लगता है कि जो मुद्दा किसी भाषा की शिक्षा से जुड़ा हुआ है, वह ऐसी घटनाओं से ग़ैर-ज़रूरी राजनीति में बदल जाता है.
लेखिका प्रज्ञा दया पवार ऐसी हिंसा से आहत हैं और उसका विरोध करती हैं. उन्होंने फ़ेसबुक पोस्ट में भाषा के आंदोलन से जुड़ी हिंसा की निंदा की है.
प्रज्ञा दया पवार ने बीबीसी से कहा, “हम सब को पता है कि मराठी भाषा का आंदोलन जो महाराष्ट्र में खड़ा हो रहा है, उसमें सबसे अहम बात है पहली कक्षा से ‘तीसरी भाषा’ को पाठ्यक्रम में शामिल करना. कई विद्वानों ने यह कहा है कि बच्चों के लिए यह ठीक नहीं है, हम उसका विरोध कर रहे हैं. मगर मुझे लगता है कि हिंदी बोलने वालों के साथ मारपीट या फिर हिंसा से इस आंदोलन की अहमियत पर असर पड़ रहा है. यह नहीं होना चाहिए.”
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